साहित्य की युवा प्रतिभा ललित शौर्य का बसंत पर करार ब्यंग्य -बसंत तुम बुढा गए
बसंत तुम बूढ़ा गए

बसंत का बहार से बड़ा गहरा नाता है। जब-जब बसंत आता है , बहार हिलोरे मारके आती है, उछल-उछल कर आती है। और आते ही डिस्को करने लगती है। हवाएं बहती हैं, फूल खिलते हैं, आम्रमंजरियां कथकली करती हैं। बोले तो चारों ओर एक अजब सा माहौल रहता है। कहते हैं कि इस मौसम में लोग बौरा जाते हैं, पागलपन के दौरे सबसे ज्यादा इसी मौषम में पड़ते हैं। इस मौषम में कवि थोक के भाव कविताएँ लिखता है। इस ऑसम मौषम में फीलिंग चरम पर होती हैं। हर आदमी के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान होती है, ये बसंत का ही साइड इफ़ेक्ट है। ये सब बसंत के आने पर होता आया है, ऐसा सर्वविदित है। पर आज बसंत के आने का कोई अता-पता नहीं है। बसन्त की जवानी का नहीं उसके बुढ़ापे का एहसास होने लगा है। बसंत से पहले गर्मी एंट्री मार रही है। फूलों की खुश्बू की जगह पसीने की बूं फ़ैल रही है। भौरों के गुंजन से पहले ही मच्छरों की टें-टूँ सुनाई दे रही है। कवियों की कलम अब चल नहीं पा रही, नौजवानो की दाढ़ी आने से पहले ही फूल जा रही है। गालों की चमक झुर्रियों की ओट में छुपी जा रही है। बसन्त ये कैसा परिवर्तन है, लगता है तुम बूढ़ा गए। अब तो वैसे भी बसंत साल में एक बार नहीं आता। कई बार आता। भारत जैसे विराट लोकतांत्रिक देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक, कहाँ से कहाँ तक, यहाँ से वहाँ तक बसंत साल भर छाए रहता है। अब बसंत और चुनाव का गठबंधन हो चूका है। चुनाव आते ही मुरझाए चेहरे खिलने लगते हैं, पुराने से पुराने नेता पुनर्जीवित हो उठते हैं। नेता-सेता , आमजनमानस सभी दौड़ने भागने हाँफने लगते हैं। जयजयकार होती है। चुनावी नेता को चारों तरफ वोट ही वोट दिखाई देता है। ठीक वैसे ही जैसे सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई देने की परम्परा है। नेताओँ का बसंत चुनाव है। ग्राम पंचायत,क्षेत्रपंचायत, जिला पंचायत,नगर पंचायत, नगर पालिका, विधानसभा, लोक सभा इनमें से कोई न कोई चुनाव किसी ना किसी प्रदेश में साल भर लगा रहता है। जब भी ये चुनाव होता है देश के उस हिस्से में बसंत की हमक सी होती है। चुनाव परिणाम आने तक सब बौराये रहते हैं। उसके बाद कईयों की हवा निकल जाती है, और कइयों में अप्रत्याशित हवा भर जाती है। खैर ये तो मानव निर्मित बसंत है, पर वास्तविक बसंत बूढ़ा सा गया है।जिम्मेदार कौन है समझना होगा।
ललित शौर्य
प्रदेश मंत्री अखिलभारतीय साहित्य परिषद
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