Monday, 24 April 2017
भुवन विष्ट की कविता : गर्मी
गर्मी का नाम सुनते ही, पसीने छूट जाते हैं, एसी, कूलर वाले कमरे भी, गर्म नजर आते हैं, वास्तव में सोचने को मजबूर कर देते, दोपहर की तपती धूप में, सड़क किनारे पत्थर तोड़ती वह महिला, गर्म -लू को सहकर, रिक्शा चलता वह चालक, पसीना पोछते नन्हे वह हाथ, ढेले को धकेल रहे, भयंकर गर्मी में भी , मुस्कराकर काम किये जाते हैं, गर्मी का नाम सुनते ही, पसीने छूट जाते हैं, एसी, कूलर वाले कमरे भी, गर्म नजर आते हैं,.... यह मानव तन की आदतें, सांचे के अनुसार ढल जाते हैं, थोड़ी सी ठंड में कपकपी, गर्मी का नाम सुनते ही , पसीने छूट जाते हैं, एसी, कूलर वाले कमरे भी, गर्म नजर आते हैं,..... .....भुवन बिष्ट रानीखेत (उत्तराखण्ड)
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