Wednesday, 25 March 2015
खटीमा
खटीमा बार एसोसियेसन चुनाव में मोहन चौहान अध्यक्ष व एम इलियास सिद्दीकी निर्विरोध सचिव बने। उपसचिव पद पर भरत पाण्डे व चन्दन राना के बीच होगा मुकाबला।
Friday, 6 March 2015
खटीमा पुलिस ने खेली होली
होली पर आम जनता की सुरक्षा में लगी रहने वाली पुलिस के जवानों ने होली के दुसरे दिन धूम धड़ाके के साथ होली खेली। थाना परिसर में डी जे पर थिरकने के साथ ही एक दुसरे को रंगों से सरोबार कर दिया।
क्या यही हैं "अच्छे दिन" ?
क्या यही हैं "अच्छे दिन" ?
अजय नारायण शर्मा
संसद के अंदर ही नहीं संसद के बाहर भी सरकार जमीन अधिग्रहण बिल पर घिरती नजर आ रही है। सरकार की मुश्किलें बढ़ाने के लिए अन्ना हजारे भी मैदान में कूद गए हैं। अन्ना ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में जंतर मंतर पर 2 दिन के अनशन ने और अन्ना आंदोलन को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के अलावा कई और पार्टियों के नेताओं से समर्थन मिलने के कारण सरकार की मुश्किलें बढती जा रही है। 22 किसान संगठन, और मेधा पाटकर जैसी एक्टिविस्ट अन्ना के अनशन का समर्थन कर रहे हैं। दरअसल अच्छे दिन लाने का वादा करने वाले नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की छवि एक धोखेबाज की बनती जा रही है। अब तक के कार्यकाल में मोदी सरकार पूंजिपतियों की ही शुभचिंतक बनती दिखी है। आम जनता के हितों के लिये सरकार की योजनायें/घोषणायें केवल नौंटकी ही साबित हो रही हैं। साल की शुरुआत ही नरेन्द्र मोदी ने देशी-विदेशी पूँजीपतियों के स्वागत में कुछ और लाल गलीचे बिछाने से की थी। मौका था ‘वाइब्रेंट गुजरात’ और ‘प्रवासी भारतीय सम्मेलन’ का। गुजरात में आयोजित इन दोनों सम्मेलनों में पूँजीपतियों को लुभाने के लिए मोदी ने उनके सामने ललचाने वाले व्यंजनों से भरा पूरा थाल बिछा दिया गया था– आओ जी, खाओ जी! श्रम क़ानूनों में मालिकों के मनमाफिक बदलाव, पूँजीपतियों के तमाम प्रोजेक्टों के लिए किसानों-आदिवासियों से ज़मीन हड़पने का पूरा इन्तज़ाम, कारख़ाने लगाने के लिए पर्यावरण मंज़ूरी फटाफट और बेरोकटोक करने की सुविधा, तमाम तरह की सरकारी बन्दिशों और जाँच-पड़ताल से पूरी छूट, सस्ते से सस्ता बैंक ऋण और टैक्सों में छूट। यानी ‘ईज़ ऑफ़ बिज़नेस’ (बिज़नेस करने की आसानी)! 26 जनवरी को मुख्य अतिथि बनकर आ रहे साम्राज्यवादी लुटेरों और हत्यारों के सबसे बड़े सरगना अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की यात्रा से पहले बीमा क़ानून से लेकर भूमि अधिग्रहण क़ानून तक अध्यादेशों के ज़रिये बदल दिये गये थे ताकि विदेशी लुटेरों को भरोसा दिलाया जा सके कि हिन्दुस्तान के लोगों की मेहनत और यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने में उनकी राह में कोई रुकावट नहीं आने दी जायेगी। मोदी सरकार का अब तक का कार्यकाल जनता के बुनियादी अधिकारों की कीमत पर देश के शोषक वर्गों के हितों को सुरक्षित करने और उन्हें तमाम तरह से फायदे पहुँचाने के इन्तज़ाम करने में ही बीता हैं। आम अवाम के लिए ‘अच्छे दिन’ न आने थे और न आये, लेकिन अपने पूँजीपति आकाओं को अच्छे दिन दिखाने में मोदी ने कोई कसर नहीं उठा रखी। मज़दूरों और ग़रीबों की बात करते हुए सबसे पहला हमला बचे-खुचे श्रम अधिकारों पर किया गया। पहले राजस्थान सरकार ने घोर मज़दूर-विरोधी श्रम सुधार लागू किये और उसी तर्ज़ पर केन्द्र में श्रम क़ानूनों में बदलाव करके मज़दूरों के संगठित होने तथा रोज़गार सुरक्षा के जो भी थोडे़ अधिकार कागज़ पर बचे थे, उन्हें भी निष्प्रभावी बना दिया। योजना आयोग को ख़त्म करके बने नीति आयोग का उपाध्यक्ष जिन अरविन्द पनगढ़िया को बनाया गया है वे ही राजस्थान की भाजपा सरकार के श्रम सुधारों के मुख्य सूत्रधार रहे हैं। पनगढ़िया महोदय सारा जीवन अमेरिका में रहकर साम्राज्यवादियों की सेवा करते रहे हैं और खुले बाज़ार अर्थव्यवस्था तथा श्रम सम्बन्धों को ‘लचीला’ बनाने के प्रबल पक्षधर हैं। इससे पहले मुक्त बाज़ार नीतियों के एक और पैरोकार अरविन्द सुब्रमण्यन को प्रधानमंत्री का मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया जा चुका है। मोदी सरकार के तमाम पाखण्डपूर्ण दावों के बावजूद सच यही है कि यह उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों को मनमोहन सरकार से भी ज़्यादा ज़ोरशोर से लागू करेगी और इनसे मचने वाली तबाही के कारण जनता के असन्तोष को बेरहमी से कुचलेगी तथा लोगों को आपस में लड़ाने के लिए साम्प्रदायिक फासीवादियों के हर हथकण्डे का इस्तेमाल करेगी। यह भू
-अधिग्रहण अध्यादेश भी देश की संसदीय जनतांत्रिक प्रणाली पर किया गया आघात है क्योंकि ये अध्यादेश संसद में बिना चर्चा कराये दोनों सदनों (राज्य सभा व लोकसभा) के सत्रावकाश के दौरान चोर दरवाजे से उस समय लाये गए हैं जब अगले दो महीने में ही संसद के सत्र चलेंगें। ये अध्यादेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 की घोर अवमानना का निर्लज प्रदर्शन हैं जो कहता है कि इस प्रकार के अध्यादेश केवल विशेष परिस्थितियों या आपातकालीन स्थितियों में लाये जा सकते हैं।
भारतीय संविधान के अनु 39 B में प्राकृतिक संपदाओं पर देश के नागरिकों के अधिकार को परिभाषित किया गया है। लेकिन नया भू-अधिग्रहण अध्यादेश भारतीय संविधान के विरोध में खड़ा होते हुए प्राकृतिक संसाधनों को कंपनियों के हवाले कर देने के और अग्रसर है। इसलिए अध्यादेश जन विरोधी होने के साथ-साथ संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।
सरकार ने इन अध्यादेशों के जरिये एक ही झटके में जल, जंगल, जमीन ओर खनिज पर लोगों को प्राप्त हुए सिमित अधिकार को ख़त्म करते हुए कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहण के रास्ते को बहुत ही आसान बना दिया है। किसानों और मज़दूरों के लिए ज़मीन का मामला उनके अस्तित्व से जुड़ा होता होता है, इसलिए उन्होंने भारत की सडकों पर अपने अस्तित्व और रोजी रोटी की खातिर बरतानिया हुकूमत द्वारा बनाये गये सन् 1894 के भू-अधिग्रहण कानून को बदले जाने के लिए खून बहाया, और आदिवासियों तथा किसानों के ढेरो आंदोलनों और कुर्बानियों के बाद पिछली सरकार “भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्यर्वस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार कानून, 2013 ” नाम से औपनोवेशिक भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव लाने के लिए बाध्य हुई थी।
हालाँकि संशोधित कानून भी जमीनों को अधिग्रहित करने का ही कानून था जमीनों को बचाने का नही, फिर भी वह कानून भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में संविधान के तहत स्थापित स्थानीय स्वशासी संस्थाओं और ग्रामसभाओं से परामर्श लेने तथा 70% किसानों के सहमती के प्रावधानों को रखता था। उस कानून में भूमि अधिग्रहण से पहले विकास परियोजनाओं के सामाजिक प्रभाव के अध्ययन का उल्लेख था और कहा गया था कि भूमि अधिग्रहण का कुल परिणाम ऐसा होना चाहिए कि वह प्रभावित लोगों के लिए गरिमामय जीवन का रास्ता तैयार कर सके, और इस मकसद से भू-अधिग्रहण से पहले परियोजनाओं के सामाजिक प्रभाव के आकलन का स्पष्ट प्रावधान था। परन्तु मोदी सरकार द्वारा लाये गए नए भू-अधिग्रहण अध्यादेश में कॉर्पोरेट के निहित स्वार्थ में इन सारे प्रावधानों को तिलांजलि दे दी गयी है और इसके साथ ही साथ वनाधिकार कानून 2006, वन संरक्षण कानून आदि जैसे 13 अन्य कानूनों को भी अध्यादेश के अन्तर्गत लाया गया है, जिसके वजह से लोगों के अधिकारों को निहित करने वाले जनपक्षीय कानून निष्प्रभावी हो जायेंगें, और सरकार तथा कंपनियों द्वारा व्यक्तिगत और सार्वजनिक ज़मीनों के अधिग्रहण/अतिक्रमण की प्रत्येक कार्यवाही कानूनी प्रक्रिया के दायरे से मुक्त हो जायेगी। सरकार बनने के पहले देश की जनता को तमाम गुलाबी सपने दिखाये गये थे। दावा किया गया था कि महँगाई और बेरोज़गारी की मार को ख़त्म किया जायेगा; पेट्रोल-डीज़ल से लेकर रसोई गैस की कीमतें घटेंगी, रेलवे भाड़ा नहीं बढ़ाया जायेगा; भ्रष्टाचार दूर होगा और विदेशों से इतना काला धन वापस लाया जायेगा कि हर आदमी के बैंक में लाखों रुपये पहुँच जायेंगे। लेकिन पिछले सात महीनों में ही देश की आम मेहनतकश जनता को समझ आने लगा है कि किसके “अच्छे दिन” आये हैं! रसोई गैस की कीमतें और और रेल किराया सत्ता में आते ही बढ़ चुका था , खाने-पीने की चीज़ों के दाम आसमान छू रहे हैं। श्रम क़ानूनों से मज़दूरों को मिलने वाली सुरक्षा को छीना जा चुका है, तमाम पब्लिक सेक्टर की मुनाफ़ा कमाने वाली कम्पनियों का निजीकरण किया जा रहा है, जिसका अंजाम होगा बड़े पैमाने पर सरकारी कर्मचारियों की छँटनी। ठेका प्रथा को ‘अप्रेण्टिस’ जैसे नये नामों से बढ़ावा दिया जा रहा है। पेट्रोलियम उत्पादों की अन्तरराष्ट्रीय कीमतें आधी हो जाने के बावजूद मोदी सरकार ने तमाम टैक्स और शुल्क बढ़ाकर उसकी कीमतों को ज़्यादा नीचे नहीं आने दिया है। विदेशों से काला धन वापस लाने को लेकर तरह-तरह के बहाने बनाये जा रहे हैं और देश में काले धन को और बढ़ावा देने के इन्तज़ाम किये जा रहे हैं। रुपये की कीमत में रिकार्ड गिरावट के चलते महँगाई और ज़्यादा बढ़ रही है। दूसरी तरफ़, अम्बानी, अदानी, बिड़ला, टाटा जैसे अपने आकाओं को मोदी सरकार एक के बाद एक तोहफ़े दे रही है! तमाम करों से छूट, लगभग मुफ्त बिजली, पानी, ज़मीन, ब्याजरहित कर्ज़ और मज़दूरों को मनमाफिक ढंग से लूटने की छूट दी जा रही है। देश की प्राकृतिक सम्पदा और जनता के पैसे से खड़े किये सार्वजनिक उद्योगों को औने-पौने दामों पर उन्हें सौंपा जा रहा है। ‘स्वदेशी’, ‘देशभक्ति’, ‘राष्ट्रवाद’ का ढोल बजाते हुए सत्ता में आये मोदी ने अपनी सरकार बनने के साथ ही बीमा, रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों समेत तमाम क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को इजाज़त दे दी है। ‘मेक इन इण्डिया’ के सारे शोर-शराबे का अर्थ यही है कि “आओ दुनिया भर के मालिको, पूँजीपतियो और व्यापारियो! हमारे देश के सस्ते श्रम और प्राकृतिक संसाधनों को बेरोक-टोक जमकर लूटो!” मगर मोदी की तमाम धावा-धूपी और देशी-विदेशी लुटेरों के आगे पलक-पाँवड़े बिछाने की कोशिशों के बावजूद असलियत यह है कि निवेशक पूँजी लेकर आ ही नहीं रहे हैं। लगातार गहराती मन्दी के कारण विश्व पूँजीवादी व्यवस्था के सारे सरगना ख़ुद ही परेशान हैं। अति-उत्पादन के संकट के कारण दुनियाभर में उत्पादक गतिविधियाँ पहले ही धीमी पड़ रही हैं और तमाम उपायों के बावजूद बाज़ार में माँग उठ ही नहीं रही है, तो ‘मेक इन इंडिया’ करने के लिए पूँजी निवेशकों की लाइन कहाँ से लगने लगेगी? जो आयेगा भी, वह चाहेगा कि कम से कम लगाकर ज़्यादा से ज़्यादा निचोड़ ले जाये। मोदी आजकल यही लुकमा फेंकने की कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी तरह आप पूँजी लगाओ तो सही, हम आपको यहाँ लूटमार मचाने की हर सुविधा की गारंटी करेंगे। हाल में भारतीय पूँजीपतियों के संगठन एसोचैम ने कहा कि निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ने की सम्भावना ही कहाँ है जबकि बहुत से उद्योगों में पहले ही सिर्फ 30-40 प्रतिशत उत्पादन हो रहा है। अब तमाम पूँजीपति सरकार से खर्च बढ़ाने की गुहार लगा रहे हैं।
ज़ाहिर है कि अमीरों के “अच्छे दिनों” का ख़र्चा आम जनता की जेब से ही वसूला जायेगा। लेकिन आम लोग “अच्छे दिनों” की असलियत को समझ रहे हैं और उनके भीतर नाराज़गी और गुस्सा बढ़ रहा है। यही कारण है कि मोदी सरकार लुटेरों की सेवा करने के अपने जनविरोधी कदमों के साथ ही देश भर में साम्प्रदायिक तनाव भड़काया जा रहा है। पहले ‘लव जिहाद’ का शोर मचाया गया था, जो कि फ़र्जी निकला; उसके बाद, ‘घर वापसी’ के नाम पर तनाव पैदा किया जा रहा है ‘रामज़ादे-हरामज़ादे’ जैसी बयानबाज़ियाँ की जा रही हैं मोदी सरकार को भगवा ब्रिगेड 800 वर्षों बाद ‘हिन्दू राज’ की वापसी क़रार दे रही है कुछ वर्षों में सारे भारत को हिन्दू बनाने का एलान किया जा रहा है हिन्दू औरतों से चार बच्चे पैदा करने के लिए कहा जा रहा है! भगवा ब्रिगेड की हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिकता के साथ ओवैसी जैसी इस्लामिक कट्टरपंथी नेता भी साम्प्रदायिक उन्माद भड़का रहे हैं। साम्प्रदायिक माहौल और दंगों का लाभ चुनावों में हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथियों को भी मिलेगा और साथ ही ओवैसी जैसे इस्लामिक कट्टरपंथियों को भी; इसके अलावा, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, सपा, बसपा, आप, राजद, जद (यू) जैसी तथाकथित सेक्युलर पार्टियों को भी वोटों के ध्रुवीकरण का लाभ मिलेगा। और इस तनाव के माहौल में किन लोगों की जान-माल का नुकसान होगा? आम मेहनतकश जनता का, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान!
ऐसे में यही उम्मीद की जानी चाहिये कि जनता‘अच्छे दिनों’ के भरम से बाहर निकले और आने वाले कठिन दिनों के संघर्षों के लिए ख़ुद को तैयार करें।
होली के उल्लास के बीच मातम
खटीमा क्षेत्र के रतनपुर गावं में होली का उल्लास उस समय कोहराम में बदल गया जब पानी से भरे गड्डे में दो किशोरियों की गिरकर डूब जाने से मृत्यु हो गयी। बताया जाता है कि खटीमा के सिटी कान्वेंट स्कूल में कक्षा 7 व 8 में पढने वाली मनीषा धामी व दिव्या चंद बच्चो के साथ खेलते हुए गड्डे में गिर गयी थी ।इस घटना से पूरे क्षेत्र में शोक की लहर है।
Tuesday, 24 February 2015
धर्म का रंग
Sunday, 22 February 2015
एरियर भुगतान की मांग को लेकर धरने में बैठी सेवानिवृत्त महिला
सम्मलेन को लेकर मंथन
पड़ोसी ने एक युवक का सिर फोडा
11 निर्धन कन्याओं का विवाह
अग्रवाल ने बताया कि संस्था द्वारा हमेशा गरीब एवं असहाय लोगों की सहायतार्थ हेतु विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाते रहे है। उन्होंने बताया कि गत सप्ताह भी खटीमा स्थित मुक्तिधाम में बर्षों से पड़ी अस्थियां जिन्हें आज तक कोई लेने नहीं आया उन्हें टनकपुर स्थित शारदा घाट में विर्सजन किया गया।
इस दौरान फाइबर्स फैक्ट्री के एमडी डा. आर. सी रस्तोगी, राजेश छाबड़ा, रंजीत सिंह, रबिश अग्रवाल, विजय कुमार गुप्ता, संजय अग्रवाल, सुरेश विश्वकर्मा, विनोद पचैली, आशु जोशी, विकास अग्रवाल, अनिल बत्रा, विपिन गुप्ता, पीडी गुप्ता, सैकड़ो लोग मौजूूद थे।
नए अंक की काव्य रचना
जनता के दर्द को पहचानते है आप'
हर खबर को सटीकता से सामने लाते है आप'
हर हफ्ते पाठको को रहती है आप की दरकार'
तभी तो देवभुमि का मर्म कहलाते है आप"
सीमान्त की हर हलचल पर रहती है आपकी नजर'
विकाश के मुद्दे भी उठाती है आपकी खबर'
साहित्य व धर्म को भी देते हैं आप उचित स्थान'
खबरों के है आप सारथी और पत्रकारिता की शान"
एक साल में ही आप पाठको की बन गए हो पसंद'
क्योकि बेख़ौप व सटीक पत्रकारिता है आपका धर्म'
संचार के नए माध्यमो को अपनाते है आप,
फेसबुक के जरिये भी खबरों से रूबरू कराते हैं आप,
आप है आम जनता के सच्चे प्रवक्ता'
तभी तो आम जनता की आवाज बन जाते है आप"
सफलतम वर्ष गांठ पर है आपको बधाई'
जनता की कसौटी पर यूँ ही खरा उतरो,अब आप दिनेश भाई"
रचनाकार-- दीपक फुलेरा
देवभूमि का मर्म साप्ताहिक समाचार पत्र के सफलतम एक वर्ष पूर्ण करने पर मेरी
और से पुरे देव भूमि का मर्म परिवार को समर्पित काव्य रचना।
Friday, 20 February 2015
आप के आने से क्या बदला
याद करें अरविंद केजरीवाल ने मात्र 49 दिनों के बाद ही मुख्यमंत्री पद से 15 फरवरी 2014 को इस्तीफा दे दिया था। उस समय भी कुछ राजनीतिक पंडितों ने भविष्यवाणी की थी कि ‘आप’ अब समाप्त हो जाएगी। पर हुआ उसके विपरीत। दिल्ली में ‘आप’ का वोट शेयर बढ़ता ही चला गया। ओपियन पोल और एग्जिट पोल के नतीजों पर भरोसा करें तो ‘आप’ दिल्ली में एक बार फिर सरकार बनाएगी। आखिर दिल्ली की अधिकतर जनता ‘आप’ को इतना पसंद क्यों कर रही है? क्यों भाजपा जैसी सुसंगठित पार्टी और नरेंद्र मोदी जैसे लोकप्रिय नेता को भी दरकिनार कर अधिकतर जनता ‘आप’ को गले लगा रही है ? जानकारों के अनुसार इसका एकमात्र कारण यह है कि ‘आप’ ने भ्रष्टाचार के प्रति लगातार शून्य सहनशीलता दिखाई है। यदि यही काम मोदी सरकार ने आठ महीनों के कार्यकाल में किया होता तो ‘आप’ की चमक गायब हो गई होती।
पर सरकार के भीतर जाकर संभवतः मोदी जी और बाहर से डा. स्वामी को लगता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ चैतरफा युद्ध छेड़ देना किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है। दूसरी ओर ‘आप’ इस तर्क से सहमत नहीं दिखती। इस पृष्ठभूमि में डा.स्वामी की यह सोच उनकी खुद की कसौटियों पर तार्किक हो सकती है। उन्हें लगता है कि नक्सली मानसिकता वाली ‘आप’ को यदि सरकार चलाने का मौका मिलेगा तो उनकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जीत ही नहीं सकेगी । और, जब जीत नहीं सकेगी तोे वे भाग खड़े होंगे। इन्हीं परिस्थितियों में केजरीवाल ने मुख्य मंत्री पद छोड़ा था। जबकि पद छोड़ने की उनकी कोई मजबूरी नहीं थी। इस देश में अधिकतर जनता उस नेता या दल को अधिक पसंद करती है जो अपने सिद्धांतों के लिए गददी छोड़ने के लिए तैयार रहता है। अरविंद ने जब पद छोड़ा था तो उस समय तो उनके समर्थकों के एक हिस्से ने उन पर गुस्सा दिखाया था। पर जब अरविंद ने स्थिति स्पष्ट की तो वही जनता संतुष्ट हो गई। इतना ही नहीं ‘आप’ का जन समर्थन बढ़ गया। दरअसल अधिकतर जनता ने ‘आप’ की कथित रणनीतिक त्रुटियों को नजरअंदाज किया और उसकी अच्छी मंशा पर भरोसा किया। केजरीवाल जमात का उभार जन लोकपाल आंदोलन के गर्भ से हुआ था।जब वह आदोलन चल रहा था, उस समय ‘आप’ बनी भी नहीं थी। क्योंकि उसके नेताओं का उद्देश्य राजनीति में जाना नहीं था। वे लोग अन्ना हजारे के नेतृत्व में गैर राजनीतिक आंदोलन चला कर जन लोकपाल विधेयक पास करवाना चाहते थे।
पर जनलोकपाल विधेयक के कड़े मसविदे को देख कर देश की मौजूदा राजनीतिक जमात ,खासकर मनमोहन सरकार के कान खड़े हो गए थे। यदि उस विधेयक को उसी स्वरूप में पास कर दिया गया होता तो इस देश के अनेक नेता जेल में होते और चालू राजनीति को अपना कायाकल्प कर देना पड़ता।पर इसके लिए आज भला कौन तैयार है ? इसीलिए अन्ना हजारे की सलाह से मन मोहन सरकार ने जिस स्वरूप में लोकपाल विधेयक बाद में पास किया ,वह ‘आप’ के अनुसार नख-दंत विहीन है।उनकी गिरफ्त तो कोई चूहा भी नहीं लाया जा सकेगा जबकि भ्रष्टाचार के बड़े -बड़े भेडि़यों और घडि़यालों को उनकी सही जगह बताने की जरूरत आज महसूस करती है। जिस लोकपाल आंदोलन के कारण जनता ने 2013 में ‘आप’ को सत्ता दिलाई थी,यदि वही विधेयक पास नहीं कर पाई तो वह गद्दी पर क्यों बैठी रहती ? वादा करके भूल जाने वाले दलों की भीड़ में ‘आप’ अलग तरह की पार्टी दिखाई पड़ रही है। आप के जनसमर्थन के बढ़ने का एक बड़ा कारण यही है। यदि ‘आप’ को इस बार भी सत्ता मिलेगी तो वह जन लोकपाल या यूं कहिए कि जन लोकायुक्त विधेयक को भूल नहीं सकती। पर विधेयक का जो मसविदा ‘आप’ के पास है, उसे विधेयक के रुप में पेश करने से पहले पूर्वानुमति की जरुरत पड़ेगी। ऐसे कड़े कानून बनाने की पूर्वानुमति यह व्यवस्था देगी ? उम्मीद तो नहीं है। डा.स्वामी को तो यह साफ लगता है कि वह अनुमति नहीं मिलेगी।फिर यदि बनी तो क्या ‘आप’ की सरकार सिर्फ कुर्सी गरम करने के लिए कुर्सी पर बनी रहेगी ? डा.स्वामी को लगता है कि ऐसा नहीं होगा,इसलिए तुनक कर आप सरकार फिर गददी छोड़ देगी। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार यदि ऐसा हुआ तो उसका पूरे देश पर असर पड़ेगा । कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि पूरा देश वर्षों से भीषण सरकारी और गैर सरकारी भ्रष्टाचार से पीडि़त है। 1966-67 में डा.राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में देश में कुछ गैर कांग्रेसी दलों का जो साझा आंदोलन और चुनावी अभियान चला था,वह मुख्यतः भ्रष्टाचार के खिलाफ ही था। 1974-77 के जेपी आंदोलन का सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार था। बोफर्स तथा अन्य घोटाले के खिलाफ वी.पी.सिंह के नेतृत्व में 1987-89 में चले आंदोलन का मुख्य मुददा तो सिर्फ भ्रष्टाचार था।पर इन आंदोलनों के बाद निजाम बदलने के बावजूद देश के हालात नहीं बदले। इन में से किसी सरकार ने यह कह कर गद्दी नहीं छोड़ी थी कि चूंकि वे अपने आंदोलन के मुददे को सरकार में आकर लागू नहीं कर पा रहे हैं,इसलिए गद्दी छोड़ रहे हैं। यह काम सिर्फ ‘आप’ ने किया। यदि इस बार गद्दी मिलने पर देश की भ्रष्टाचार समर्थक शक्तियां एक बार केजरीवाल को गददी छोड़ने को विवश कर देंगीं तो उसका राजनीतिक परिणाम देश भर में प्रकट हो सकता है।‘आप’ देर -सवेर राष्ट्रीय पार्टी बन कर उभर सकती है।क्योंकि उसकी अच्छी मंशा के कायल देश भर के लोग हो सकते हैं। याद रहे कि आप के 2013-14 के 49 दिनों के शासनकाल में दिल्ली में भ्रष्टाचार काफी हद तक थम गया था।ऐसा प्रभाव अब तक मोदी सरकार नहीं दिखा पाई है। नतीजे बताते हैं कि इस बार भी ‘आप’ को सभी जातियों,वर्गो और समुदायों में से उन लोगों के वोट मिले हैं जो भ्रष्टाचार को इस देश की सबसे बड़ी समस्या मानते हैं। ‘आप’ की अगली सफलता या विफलता दोनों ही स्थितियों में देश भर में एक खास तरह के राजनीतिक ध्रुवीकरण की संभावना जाहिर की जा रही है।वह धु्रवीकरण भ्रष्टाचार समर्थक और भ्रष्टाचार विरोधी शक्तियों के बीच हो सकता है।यदि ऐसा हुआ तो इसके साथ यह भी अपने आप हो जाएगा कि जाति,समुदाय और संप्रदाय के आधार पर समाज को बांट कर वोट बटोरने वाले नेताओं को उनकी नानी याद आ जाएगी।
Sunday, 15 February 2015
Sunday, 8 February 2015
बेटिया बचाओं, बेटिया पढ़ाओ
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बेटी बचाओ |
बेटिया बचाओ बेटिया पढ़ाओ की जनता से गुहार लगा रही है,
बेटिया है अनमोल बेटियों का समझो मोल,
इस बात का महत्व आमजन को समझा रही है"
नारी शक्ति के महत्व को देश के पीएम भी मान चुके,
तभी तो देश के विकाश में नारी के योगदान को बड़ा रहे है"
गर बेटिया ना होंगी जरा समझो देश के लोगो,
बहूँ कहा से लाओगे ये बात समझा रहे है,
पुरातन काल से ही जिन बेटियो ने बडाया हो देश का मान,
नव भारत निर्माण में भी बेटीओ की जरुरत दर्शा रहे है,
घर की चौखट से देश की सरहद तक अब तो बेटी की गूंज है,
बेटिया बचेगी जब तभी मानव सभ्यता महफूज है"
गर बचाओगे बेटीयो को व शिक्षा का दोगे ज्ञान,
तब महकेंगी बेटिया व देश का बढ़ाएगी स्वाभिमान"
बेटिया होंगी तब सुरक्षित तब देश भी चेहकेगा,
बेटिया बचाओ,बेटिया पढ़ाओ का सन्देश जब घर घर में महकेगा,घर घर में महकेगा"
सन्देस -- (सेव द गर्ल,एजुकेट द गर्ल)
खटीमा महाविद्यालय में दो गुटों में भिडंत
भारत ने अपना दूसरा विकेट विराट कोहली (18) के रुप में खोया। मिशेल स्टॉर्क ने कोहली को आउट कर अपनी टीम को दूसरी सफलता दिलाई। इससे पहले लंबे समय बाद मैदान पर लौटने वाले रोहित शर्मा अपनी वापसी शानदार नहीं कर सके और महज 8 रन बनाकर आउट हो गए।
इससे पहले ऑस्ट्रेलिया ने 2 शतकों के दम पर 371 रनों का विशाल स्कोर खड़ा करने में सफल रही, लेकिन वह पूरे 50 ओवर नहीं खेल सकी और 48.2 ओवर में आउट हो गई। मेजबान टीम की ओर से ओपनर डेविड वॉर्नर ने 104 और ग्लेन मैक्सवेल ने 122 रनों की शतकीय पारियां खेली।
गूगल महाराज की आरती
